Sunday, March 17, 2019

Patr

Monotype लघु लेख

शबनम  और शाहिद दोनों बहुत नाराज़ थे।  सकीना और अस्लम भी मुंह सुजाये बैठे थे. शबनम बोली "ये कैसे लेखक हैं? अपने पात्रों को इतना स्टीरियोटाइप कैसे करते रहते हैं? इन्हें कुछ पता भी है के नहीं? क्या किसी दुसरे ग्रुह से आये हैं?" शाहिद ने चुप कराने की नाकाम कोशिश की,  वो गुर्राती रही "अरे जैसे चाहो बना लो, जो चाहो करवा लो, फिर भी वही हकीम की बेटी, कसाई की बहु, बुनकर की बीवी और तलाक की मारी अबला ! और अब नकाब की मारी लड़की! हद्द है ! मुझसे तो अब न हो पायेगा... " शाहिद बोला "अरे हम क्या कर सकते हैं? मुझे तो अब मुल्ला या गुमराह टाइप का बेकार लफंगा बनते ही ज़िन्दगी निकलती नज़र आ रही है. कभी मन करता है की ऑफिस जाऊं, बड़ा बाबु बनूँ, पर लेखन पे लेखक के सिवा किसका ज़ोर चलता है? हम कुछ नहीं कर सकते! किस्मत में ढाक के तीन पात है तो है ! तू ज़्यादा परेशान होकर कुछ नहीं कर पायेगी".  शबनम बोली "अब कुछ करना ही पड़ेगा" शाहिद का हाथ पकड़ा और दोनों निकल कर सड़क पर आ गए, वहां से बस में बैठ कर आये और मेरे दरवाज़े की घंटी ज़ोर ज़ोर से बजाने लगे।  मैं अपने कुछ पात्रों में व्यस्त था तो दरवाज़ा थोड़ी देर से खोला, जैसे खोला दनदनाती हुई अंदर आ गयी शबनम। जान न पहचान में तेरा मेहमान वाली सिचुएशन बहुत दिन बाद हुई थी मेरे साथ. मैंने कहा कौन हो तुम लोग और इतनी रात गए यहाँ क्यों आये हो?

उनके लेखक से उनकी नाराज़गी , मुझसे नए व्यक्तित्व की गुहार और एक मेकओवर की डायरेक्ट रिक्वेस्ट. मैं सुन कम रहा था देख ज़्यादा रहा था।  देखा पुराने कपडे न अह्म छुपा पा रहे थे न अंग. शाहिद ने मुझे शबनम को देखते हुए देख लिया और आंखें मीच के मुझे देखा।  मुझे लगा इनके बीच में कुछ है। फिर सोचा हो तो हो, ... अपने दुसरे पत्रों को एक एक कर विदा किया , सब चले गए लेकिन मिस्सेस डीकोस्टा को निपटाने में कुछ वादे करने पड़े । आगे जाकर उनकी कीमत अदा करनी पड़ेगी।

मैं अपनी मेज़ पैर लौटा और लिखने लगा।  शबनम को अंग्रेजी बोलने वाली, पीएचडी करने वाली लड़की के रूप में कहानी में एंट्री दी. शाहिद को आर्किटेक्ट बनाया। दोनों को फोर सीसन्स के एयर लाउन्ज में पहली बार मिलवाया। गोवा घुमाया। शाहिद को पोलो खिलाया और शादी करवाने से पहले मेरे संपादक की नज़र इनकी अधूरी कहानी पर पड़  गयी।  "क्या बकवास लिख रहे हो क़तील" उसने कहा, "घेट्टो नेम्स डोंट डांस इन द बॉलरूम। यू नो दैट" मेरा मन कहा की कहानी लिख कर अपने पास रख लूँ , पर ऐसा करने पर पात्र मर जाते हैं।  उनके नाम काट कर दीपिका और रणबीर कर दिया। 

शबनम आज बाजार में सब्ज़ी बेचती है और शाहिद मोबाइल रेपियर करता है।  उनकी ये वाली कहानी सुपरहिट हो गई . अब वो मुझसे कभी नहीं कहते की मेकओवर चाहिए. पर कभी कभी बाजार से लौटते वक़्त शबनम वाल्ट्स के एक दो स्टेप कर लेती है.

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